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साभार.....
स्वरा भास्कर की बुझी हुईं शकल सूरत पर तंज करके,उसकी बुर्के में ढंकी तस्वीरें दिखा कर आप सोचते होंगे कि आप नई जेनरेशन की लड़कियों को इस्लाम की वीभत्स सच्चाई,इसके क्रूर परिणाम दिखा लेंगे... उन्हें उधर जाने से रोक लेंगे...
लेकिन शायद आप एक इंडॉक्ट्रिनेटेटिड माइंड की अवस्था को नहीं समझ रहे. वामपंथ की जकड़ में बंधे मस्तिष्क के कनेक्शंस को नहीं पढ़ पा रहे.

इन तस्वीरों में स्वरा एक विक्टिम दिखाई देती है..पर यह विक्टिमहुड उसने खुद चुना है.वह इसको दुनिया के सामने दिखा रही है,उसकी प्रदर्शनी कर रही है. और एक भी वामी फेमिनिस्ट लड़की इसके लिए उसके चॉइसेस को दोष नहीं देगी.बल्कि वह और आकर्षित होगी कि जरूर इस्लाम में कोई खास बात होगी.. स्वरा को इस गुलामी से,इस नरक से कुछ तो मिला होगा कि उसने हंसती खेलती आजादी को छोड़कर इसको खुद चुना.

स्वतंत्रता एक सुंदरतम अवस्था है.. लेकिन हर किसी को इसका वही मूल्य नहीं दिखाई देता. मनुष्य की सारी उपलब्धियां,सभ्यता की सारी प्रगति मानव स्वतंत्रता की देन है. लेकिन यह एसोसिएशन सबको स्वतः दिखाई नहीं देता. सबसे पहले,सबसे आसानी से हम अपनी इस सबसे बड़ी सम्पदा को सरेंडर करने को तैयार हो जाते हैं.और जो पहले से ही वामपंथी है,जिसने एक बार अपनी स्वतंत्रता को सरेंडर कर दिया उसे एक जेल से निकल कर दूसरी जेल में जाने में क्या समस्या हो सकती है?

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यह तो अति हो गई खड़गे साहब ? आपने योगी आदित्यनाथ की तुलना आतंकवाद से कर दी ? मतलब प्रकारांतर से भगवा को कहा क्या ? अपने भगवा और योगी के मुंडे हुए सिर पर भी टिप्पणी कर दी ? क्या जरूरत थी इस सब की ? वह तो आपके सिपहसालार दिग्विजय सिंह बरसों पहले भगवा आतंकवाद का ढिंढोरा पीट चुके हैं ।

यह और बात है कि जब कोई प्रमाण नहीं मिला तो दिग्विजय का बयान खुद अपनी ही मौत मर गया । योगी आदित्यनाथ एक संत जरूर हैं , एक बहुत बड़ी गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर भी हैं , लेकिन कोई संत राजनीति में नहीं आएगा , ऐसा कोई विधान नहीं है । आपकी सरकार 60 वर्ष सत्ता में रही खड़गे साहब , ऐसा कोई कानून आपकी पार्टी ने भी नहीं बनाया ।

कांग्रेस की सर्वोपरि नेता इंदिरा जी के मां आनंदमयी , धीरेन्द्र ब्रह्मचारी , शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती आदि से कितने गहरे संबंध थे , पता है न आपको ? राजनीति का धर्म से कोई बैर नहीं है । धर्म और अध्यात्म तो प्राचीनकाल से राजनीति को दिशा देते आए हैं । यूं भी हम और आप संसार के सबसे प्राचीन देश भारतवर्ष में रहते हैं । चूंकि आप संस्कृति के गढ़ दक्षिण भारत से आते हैं अतः यहां का सांस्कृतिक वैभव आपको भली भांति पता है ।

खड़गे साहब जरा पड़ौसी बांग्लादेश में हिंदुओं की दुर्दशा भी देख लीजिए ? हिन्दू औरतों को किस तरह भीड़ के बीच नंगा किया जा रहा है , दर्जनों लोग उन्हें सरे आम नोच रहे हैं , देखा आपने या दिखाई नहीं दिया ? बताइए , वे बांग्लादेशी हिन्दू तो बंटे भी नहीं और बिन बंटे ही कट रहे हैं । आपके आका खड़गे साहब आपके आका , हिंदुओं को जाति जाति में बांटने का षडयंत्र कर रहे हैं । 82 वर्ष की उम्र हो जाने के बावजूद आप हिंदुओं को बांटने की वकालत कर रहे हैं ?

तो योगी ने उन हिंदुओं से यही तो कहा है कि बंटोगे तो कटोगे ? साथ में यह भी कहा है कि एक रहोगे तो नेक रहोगे । अरे जनाब आप को हिंदुओं की रत्ती भर परवाह नहीं तो कोई बात नहीं । हो भी कैसे , आधे हिन्दू तो आपके और सेक्युलर पार्टियों के साथ ही हैं न ! फिर क्या गम ? आप जानते भी हैं कि हिन्दू कभी एक नहीं होंगे और आपकी बस्तियां बसती रहेंगी । और हां जनाबे आली , हिन्दू कभी सचमुच एक हो गए तो आपकी बंसरी फट जाएगी और आपके आका म्याऊं म्याऊं करते फिरेंगे ।

तो बुजुर्गवार आदरणीय योगी को और उनके भगवे को आतंकवादी मत कहिए । उन पर पार पाना आपके बस में नहीं । पर एक बात जरूर है खड़गे साहब ! अभी तक आप शाह मोदी तक सीमित रहे जिनका कद आपके समकक्ष है । अब आप एक मुख्यमंत्री पर आए हैं । यक़ीनन कल हेमंता बिस्व सरमा पर आएंगे । क्या जरूरत है इस उम्र में इतनी मशक्कत की ? आराम की उम्र है बुजुर्गवार आराम कीजिए । योगी और हेमंता पर आएंगे तो मुश्किल होगी ?

पीपल पेड़ के स्वास्थ्यलाभ
यह पेड़ केवल भारतीय उपमहद्वीप में पाया जाता है। भारतीय इस पेड़ का धार्मिक महत्‍व तो है साथ ही आयुर्वेद में इसका खास महत्‍व है। कई बीमारियों का उपचार इस पेड़ से हो जाता है। गोनोरिया, डायरिया, पेचिश, नसों का दर्द, नसों में सूजन के साथ झुर्रियों की समस्‍या से निजात पाने के लिए इस पेड़ का प्रयोग कीजिए। एंटीऑक्‍सीडेंट युक्‍त यह पेड़ हमारे लिए बहुत फायदेमंद है।

झुर्रियों से बचाव
पीपल की जड़ों में एंटीऑक्सीडेंट सबसे ज्यादा पाए जाते हैं। इसके इसी गुण के कारण यह वृद्धावस्था की तरफ ले जाने वाले कारकों को दूर भगाता है। इसके ताजी जड़ों के सिरों को काटकर पानी में भिगोकर पीस लीजिए, इसका पेस्‍ट चेहरे पर लगाने से झुर्रियां से झुटकारा मिलता है।

दातों के लिए
पीपल की 10 ग्राम छाल, कत्था और 2 ग्राम काली मिर्च को बारीक पीसकर पाउडर बना लीजिए, नियमित रूप से इसका मंजन करने से दांतों का हिलना, दांतों में सड़न, बदबू आदि की समस्‍या नहीं होती है और यह मसूड़ों की सड़न को भी रोकता है।

दमा में फायदेमंद
पीपल की छाल के अन्दर का भाग निकालकर इसे सुखा लीजिए, और इसे महीन पीसकर इसका चूर्ण बना लें, इस चूर्ण को दमा रोगी को देने से दमा में आराम मिलता है।

दाद-खाज खुजली में फायदेमंद
पीपल के 4-5 कोमल, नरम पत्ते खूब चबा-चबाकर खाने से, इसकी छाल का काढ़ा बनाकर आधा कप मात्रा में पीने से दाद, खाज, खुजली जैसे चर्म रोगों में आराम होता है।

एडि़यों के लिए
पैरों की फटी पड़ी एड़ियों पर पीपल के पत्‍ते से दूध निकालकर लगाने से कुछ ही दिनों फटी एड़ियां सामान्य हो जाती हैं और तालु नरम पड़ जाते हैं।

घावों को भरे
पीपल के ताजे पत्तों को गर्म करके घावों पर लेप किया जाए तो घाव जल्द सूख जाते हैं। अधिक गहरा घाव होने पर ताजी पत्तियों को गर्म करके थोडा ठंडा होने पर इन पत्तियों को घाव में भर देने से कुछ दिनों में घाव भर जाते हैं।

जुकाम होने पर
पीपल के कोमल पत्तों को छाया में सुखाकर उसे अच्‍छे से पीस लीजिए, इसे आधा लीटर पानी में एक चम्मच चूर्ण डालकर काढ़ा बना लें। काढ़े में पीसी हुई मिश्री मिलाकर कुनकुना करके पीने से नजला-जुकाम से राहत मिलती है।

नकसीर होने पर
नकसीर की समस्‍या होने पर पीपल के ताजे पत्तों का रस नाक में टपकायें, इससे नकसीर की समस्‍या से आराम मिलता है।

पेट की समस्‍या के लिए
इसे पित्‍त नाशक माना जाता है, यानी यह पेट की समस्‍या जैसे - गैस और कब्‍ज से राहत दिलाता है। पित्‍त बढ़ने के कारण पेट में गैस और कब्‍ज होने लगता है। ऐसे में इसके ताजे पत्‍तों के रस एक चम्‍मच सुबह-शाम लेने से पित्‍त का नाश होता है।

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जब मैं नेमिशारण्य‌‌ तीर्थ गया तो मैंने वहां‌ सूत ऋषि का आश्रम देखा। सूत ऋषि पहले संत थे जिन्होंने सभी संतों मुनियों को इकट्ठा करके उन्हें सत्यनारायण व्रतकथा सुनाई थी। तभी से सनातनियों में सत्यनारायण व्रत कथा कराने का परंपरा है।

एक और सूत‌ संत हुए हैं उग्रश्रवा जिन्हें पुराणों का पिता कहा गया है।

बाकि तो यह बात सब जानते हैं कि सूतपुत्रों को पढ़ने का अधिकार नहीं था कर्ण‌ के साथ बड़ा अन्याय हुआ है।

अपनी दो कौड़ी की किताब रश्मिरथी के चक्कर में दिनकर जो गंद मचाकर गए हैं उसे आज तक हिन्दू भुगत रहे हैं बाकि बचा खुचा काम राहि मसूम रजा ने महाभारत के डॉयलॉग में कर दिया।

रह गए हिन्दू उन्हें इतनी फुर्सत ही नहीं कि अपने ही धर्म ग्रन्थ पढ़ लें।
Rucha Mohan

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भड़के भईया का संस्मरण......
इस्सर बईठ दलिद्दर भागे

जब भी ऊख के खेतों की ओर जाते थे तो रसीले गन्ने देख कर उसे तोड़ने की इच्छा करती किन्तु बाबूजी की हिदायत कि एकादशी से पहले उख तोडना पाप है, याद कर मन मसोस कर रह जाते। ग्यारस के दिन गन्ने को सजाया जाता था और उनके बीच #वैदिक_रीति से विवाह कराया जाता। चरखी गाड़ी जाती,गन्ने की पेराई का औपचारिक शुरुआत की जाती। रस का सर्वप्रथम भोग #ग्राम_देवी को लगाया जाता था उसके बाद सारे गाँव के लोगों के साथ गन्ने का रस पिया जाता।

ताजे निकलते रस में दही डाल कर गरम गरम धनिया आलू के साथ पीने का आनंद अब केवल स्मृतियों में है। रस से राब बनायी जाती, गुड़ बनता। गुड़ बनना व्यक्तिगत नही था, आस पास के पट्टीदार, आने जाने वाले सब गर्म गर्म भेली लेकर जाते ही थे।

#तुलसी_माता के लिए चुन्नी आती थी, उसे ओढ़ा कर तुलसी के नीचे एक महीने दिया जलाया जाता था। एकादशी से एक दिन पूर्व #सूप की खरीददारी की जाती थी। सूप की गांठे हम लोग गिनते, सुबह चार बजे गांव की सारी महिलाये गन्ने से पुराने सूप पीटते हुए "इस्सर बईठ दलिद्दर भागे " कहती हुयी घर से खेत तक जाती थी वहीं पर सूप छोड़ देती थीं। सूप पीटने से प्रेत, दरिद्र सब भाग जाता है।

सूप पीटने के पीछे की एक और कथा पितरों से जुड़ी है। पितर पाख के बाद यदि कोई पितर अपने लोक जाने से रह गया हो तो सूप की आवाज एक संकेत होती थी कि महाराज अपने थाने पवाने चले जाओ।

हम बच्चों के बीच एक और मिथ (आप इसे बच्चों का सत्य भी कह सकते है ) था कि जिस बच्चे के मुह में दाने या कुछ और हो गया है अगर वो गांव की सबसे बुढ़िया का सूप छीन कर भागे तो बुढ़िया जितनी गाली देगी चेहरे की सुंदरता उतनी ही बढ़ेगी। यह काम एक बार हमारे बुआ के लड़के ने किया था। सुबह बात पता चल गयी तो (बच्चे तब झूठ नही बोला करते ) उनकी इतनी पिटाई हुयी कि बेचारे काले से लाल हो गये। सच में उस वक्त उनका चेहरा बिना किसी क्रीम के लोहित हो गया था।

आज गांव से युवा गन्ने के जैसे गायब होकर शहर में किसी चौराहे पर गन्ने को जूस निकालने वाली मशीन जैसे बैठे हैं, यह बात आज खटकती है, गन्ने के उस पेड़ को काटा नही जाता था जिसकी पूजा होती थी पर आज उसे काट कर लोग पूजा कर रहे हैं। लोक की निर्दोष यमुना शहरों में आकर आकर सभ्यता के गंदे नाले में बदल जाती है, यही स्थिति आज त्यौहारों की है। नगर का अहंकार और संकुचित मन लोक की विशालता को संभाल नही सकता। वे त्यौहारों को भव्य बनाने के चक्कर मे उनकी आत्मा खत्म कर देते हैं। अधिक भव्यता अश्लीलता होती जा रही है। देओठनी एकादशी आने वाली है, आप बधाइयां देते हैं, बैकुंठ नाथ के जागरण की बात करते हैं पर अपने अंदर इस्सर के स्थापत्य और दरिद्र को निकालने के लिए मात्र खानापूर्ति करते हैं।

जहाँ ईश्वर है वहाँ दारिद्र्य नही हो सकता। दरिद्रता का अर्थ यह नही कि आपके पास दूसरों से कम है बल्कि होने के बावजूद क्या पाएं क्या हड़प लें, दस गाड़ी है तो इग्यारहवी क्यों नही है जैसी आत्मिक वंचना में जीने से है।

#इस्सर_बईठ_दलिद्दर_भागे

पोस्ट ट्रुथ हीरो

मूल परंपरा से हट कर, बिना इवोल्यून के, बिना तप और उपार्जित गुणों के केवल नायक का मुखौटा लगाए वह व्यक्ति जो अपनी लालच के चलते दूसरों के निर्देश को जीवन पाथेय बना लेता है, पोस्ट ट्रुथ हीरो या सत्योत्तर नायक कहलाता है।

वर्तमान भारतीय व्यवस्था में धर्म के क्षेत्र में शंकराचार्य करना पर सत्योत्तर नायक खूब तैयार किए जा रहे, किए गए ताकि उन कमजोर और तमगुणी लोगों के जरिए धर्म का भी वही परिप्रेक्ष्य बनाया जा सके। एक पार्टी के एजेंट के रूप अधोक्षजानंद इसका बड़ा उदाहरण है, कुछ और उदाहरण हैं जो धर्म पर कम, बाकी मामलों पर अधिक मुखर रहते हैं।

ये फेक नायक श्रद्धा आस्था भाव के नाम पर भीड़ इकट्ठी करते हैं और फिर अपने बयानों से विरोधाभास पैदा करते हैं। यह विरोधाभास धर्म, राजनीति, सांस्कृतिक संरचनाओं को बांटने का काम करता है। लोग अपने फेक हीरो को सच मानते हुए आपस में गाली गलौज मारपीट करते हैं। वामपंथी उस मारपीट को धर्म से जोड़कर उसकी व्याख्या करता है कि जब किसी धर्म के मानने वाले अभद्र और गाली देने वाले हैं तो धर्म कैसा होगा।

वामपंथियों द्वारा पोस्ट ट्रुथ हीरो के सहारे धर्म और संस्कृति को डिस्क्रेडिट करने की चाल अत्यंत मारक होती है। ये न सिर्फ पोस्ट ट्रुथ हीरो तैयार करते हैं बल्कि सचमुच के नायक को फांसते हैं। उन्हें डिस्क्रेडिट करने के षडयंत्र रचते हैं। उनके षड्यंत्रों का शिकार होने वालों में कांची कामकोटि के स्वामी जयेंद्र सरस्वती, कृपालु जी महाराज से लेकर यह शृंखला बहुत लंबी है।

पोस्ट ट्रुथ हीरो का प्रयोग मीडिया भी खूब करती है, हिंदू धर्म से जुड़े साधुओं का चरित्र गिरा कर दिखाना और गिरे हुए लोगों को स्वामी, बाबा, गुरुजी कहकर ग्लैमराइज कर मीडिया टीआरपी बटोरता है। स्वामी अग्निवेश, स्वामी ओम जैसे लोग इसी श्रेणी के थे।

साहित्य आजतक में तमन्ना भाटिया और उर्फ़ी जावेद को बुलाना भी उसी श्रेणी में आता है। ये लोग साहित्यकार नहीं पर साहित्यकारों की जगह पर विराजमान होंगे। आप की मजबूरी ही कि साहित्य के नाम पर इन्हें देखें।

मीडिया सच बनाती है, चींटी को हाथी सिद्ध करती है, सच क्या है उससे मतलब नहीं है इसका। पोस्ट ट्रुथ यानी सत्योत्तर सिद्धांत के बारे में मास्क मैनिफेस्टो में चर्चा की है। जिन्होंने पढ़ा है वह इसे जानते हैं कि ऐसी बात जिसका अस्तित्व नहीं है उसे सत्य के रूप में स्थापित कर देना पोस्ट ट्रुथ कहलाता है। जैसे उर्फ़ी साहित्यकार नहीं फिर भी साहित्य की बातों में इसे शामिल किया जाएगा।
Pawan Vijay

कल यूट्यूब पर एक पाकिस्तानी लड़के तथा साथ में अफगानिस्तान के इतिहासकार कि कंधार यात्रा देख रहा था।
गजनी शहर गये, जँहा मुहम्मद गजनी का कभी महल था।
वह महल ऐसा था कि एक पक्के ईंट कि भी दीवार न थी।
मिट्टी के मकान जो लगभग ढह चुके थे। उस समय भारत में कोई दरिद्र भी ऐसे घरों में नहीं रह सकता था।
कुछ पक्के ईंटो कि जेल थी।
ऐसा लगता है कि बाद में लगाया गया था।
अफगानिस्तान के इतिहासकार ने बताया कि, उस समय ताजिकिस्तान, अफगानिस्तान में ऐसे कच्चे मिट्टी के महल थे। जिसमें कुछ जगह पक्की ईंट लगाई गई थी।

भारत आते ही ये सब इतने बड़े आर्टीकेट बन गये।
धन , कारीगर, कलाकृति , नक्शा सब भारत का, बनाये थे मुगल, ताजिक , गजनी।

हमारे यहाँ के वामी इतिहासकार कभी इसकी जहमत नहीं उठाये, मूल स्थानों को देखे क्या है।
खान मार्केट में सुट्टा लगाते, बाये हाथ से कमरे में बैठकर इतिहास लिख दिये।

ये है गजनी के महल है।
हमारे यहाँ उस जमाने मे भैंस भी ऐसे महलों नहीं बांधी जाती होंगी।

कहने वाले तो कह गए की इस महल को जिसने बनाया था उसीआर्टीटेक्ट ने लालकिला भी बनाया है...\ud83d\ude44
साभार

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https://youtube.com/shorts/tDK....Kp_6-JkA?si=yQb-Jj1w

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