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अमरीका में 21 दिन से काउंटिंग चल रही है।

वोट ज्यादा नही हैं।

कहीं कहीं तो 3 लाख वोट ही हैं।

लेकिन गिनती हो रही है बैलेट से।

तो हो ये रहा है कि गिनती शुरू हुई।
फिर जैसे देखा कि इस बैलेट में मोहर ठीक से नही है तो उसे साइड कर दिया। फिर देखा कि ऐसा करते करते करते 3 लाख गिनती पूरी हो गयी लेकिन जीत तो रिपब्लिकन गया।

तो फिर से गिनती हो रही।
अब फिर देखा जा रहा कि जिन बैलेट को साइड किया उनमे से कितने वैलिड माने जा सकते हैं।

फिर जितने माने गए, उन्हें भी गिनती में शामिल कर दिया।
लेकिन इसके बाद भी रिपब्लिकन जीत गया।

तो फिर गिनती हो रही कि जिस जिस को वापिस वैलिड मान लिया गया था, उसमें से किन्हें वापिस इनवैलिड मानना है या जिन्हें अभी तक नही माना था क्या उनमे तो कुछ ऐसे नही जो पहले वैलिड मान लिए गए थे लेकिन इनवैलिड माने जाने चाहिए।

इस तरह 21 दिन से गिनती चल रही है।

और एक जगह इस तरह आखिरकार 21 वोट इनवैलिड मान लिए गए और फाइनली 14 वोट से डेमोक्रेट्स जीत गया।

यही 2020 में चल रहा था जब मार्जन 51-49 का था। तब भी ट्रम्प जीत रहा था लेकिन इसे अपने पक्ष में 51-49 कर दिया।
लेकिन इस बार ट्रम्प के पक्ष में 60-40 हो रखा था तो कितना घपला कर पाते। तो जहां जहां अब इस तरह से कुछ सीटें हाउस में बढ़ा सकते हैं तो उसपर काम चल रहा है।

लेकिन इससे हमें क्या करना?

तो हमें इससे ये करना है कि इधर भी कुछ को EVM नही चाहिए।
उन्हें बैलेट चाहिए। उन्हें भी रिगिंग करनी है। फिर वो बूथ कैप्चरिंग से हो या इस तरह वैलिड-इनवैलिड खेलकर, उन्हें भी अपनी सत्ता चाहिए।
ज्यादा होगा तो बक्शा ही जला देंगे या उसमें स्याही डाल देंगे या आग लगा देंगे जो EVM में नही हो पाता।
क्योंकि इतना तो पता रहता ही है कि कौन सा बूथ किसका स्ट्रांग होल्ड है।

इसी वजह से तो इनका सबसे बड़ा बहाना है कि अमरीका तो इतना एडवांस है और वहां EVM से चुनाव नही होता।
हालांकि ये झूठ है क्योंकि कुछ राज्य में होता है लेकिन वो EVM हमारी जैसी नही होती बल्कि सॉफ्टवेयर वाली होती हैं जिन्हें हैक किया जा सकता है, जिसपर ही मस्क कहता है कि इन्हें बैन करो।
आपको EVM ऐसी नही है इसलिए आज तक कोई मम्मा का सन, उसे हैक न कर पाया और न उस चेलेंज में प्रतिभाग किया जब EC ने कहा था कि आओ और इसे हैक करकर दिखाओ।

इसलिए फर्जी आरोपो से विश्वसनीयता पर सवाल उठा सरकार विरोधी माहौल बनाया जा रहा है क्योंकि ये भी एक सफल फार्मूला है।

ऐसा ही माहौल हसीना के खिलाफ बना था कि वो धांधली कर चुंत्व जीतती है और फिर अगले स्टेप में कहा गया कि चुनाव का बहिष्कार।
लेकिन फिर भी उसकी ही सरकार बनी तो दूसरी तरफ तानाशाही का आरोप उसपर लगता गया।
बाद में कोर्ट के आदेश का बहाना बनाकर कथित छात्र आंदोलन हुआ जो अमरीका ने रचा था और फिर क्या हुआ और आज भी क्या हो रहा है, आप देख रहे हैं।

इसलिए ये आपका काम है कि यदि कोई आपके सामने कहे कि भाजपा EVM से जीत रही है तो उसे पूछो कि तुझे किसने बताया?
और साथ ही उसे बताओ कि इस तरह कुछ नही होता।
कुछ बातें समझाने हेतु मैने लिखी हैं, कुछ आप भी जानते हैं तो सबका दायित्व है कि जनता के मन मे किसी भी तरह से ये बात घर नही करनी चाहिए, वरना केरोसीन-माचिस वाले घूम ही रहे हैं।

और ये बात न कह देना कि सरकार ऐसे नेताओं को अंदर डाल दे क्योंकि ये उल्टा भी पड़ जाता है कि देखो जो कह रहा था कि चुनाव में धांधली होती है, उसका ही मुंह बंद करा दिया गया।
इसलिए इसकी हम सबको ही काट करनी है और हम वो गलती नही कर सकते जो अवामी लीग के समर्थकों ने करी कि इसे हंसी में उड़ा दिया या दूसरे को बस ट्रोल करते रहे गए।
विशाल

सोशल मीडिया बच्चों को भारतीय संस्कृति और संस्कारों से दूर ले जा रहे हैं।
जब विदेशी ऐसा कर सकते हैं तो हमारे देश में ऐसा क्यों नहीं हो सकता?

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अडानी के बहाने।

केन्या का राष्ट्रपति चीन जाता है और फिर आकर कहता है कि मैं वहां से आपके(केन्या) लिए गिफ्ट लाया हूँ।इधर अडानी पर हमला होता है। केन्या का राष्ट्रपति बहाना बनाता है और अडानी की 700 मिलीयन की पावर डील कैंसल कर देता है। साथ ही 1.8 बिलियन की एयरपोर्ट डील भी।दोनों में अडानी के कॉम्पटीशन में चीन की कम्पनियां थी।

अब मजे की बात ये है कि जो काम अडानी भारत के लिए करता है वही काम चीनी कम्पनियां CCP के लिए करती हैं। अर्थात विदेशों में पोर्ट्स, एयरपोर्ट्स, माइंस आदि लेना।

अब उधर अमरीका में कबाल अडानी पर हमला कर रहा है जिसका उद्देश्य अडानी को इंटरनेशन मार्केट से पैसे जुटाने में रोकना है।फायदा चीन का हो रहा।
नाच यहां मुस्लिम लीग रही जो अदृश्य राज्य की भी रखैल है और चीन की भी।इस तरह दो सबसे बड़े भारत के दुश्मन अडानी पर हमलावर हैं और हम यदि यहां इन भरवों को गद्दार कह दें तो हम अडानी को बचा रहे हैं।

10 साल पहले नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के केस दर्ज होते थे। अमूमन फेबियन या कांग्रेसी भ्रष्ट होते ही है तो दुनिया भर में उनके कांड खुलते थे, खूब हल्ला होता था। लोगों के सामने उनके पोल खुला करते थे। पिछले 10 साल से कुछ इस तरह का भ्रष्टाचारी होते ही नहीं। भाजपा सरकार के खिलाफ मिल नहीं रहा है,मोदी के खिलाफ ऐसा कुछ मिल नहीं रहा है तो अब भारतीय उद्योगपतियों के खिलाफ हमला होता है। अडानी पर हमला इसलिए होता है कि डायरेक्ट हमला आप मोदी पर नही कर सकते। कौन यकीन करेगा कि मोदी को पैसा बनाना है?

सटीक अटैक है कि भारत के उभरते बिजनेस मैन पर हमला करो जिसे विदेशी एजेंसियां ही मान रही कि मस्क के बाद वो दूसरा बिजनेस मैन बनेगा जो ट्रिलियन डॉलर का मालिक होगा, अर्थात ट्रिलिनीयर बनेगा।

अडानी ने ग्रीन ऊर्जा में 50 बिलियन डॉलर का निवेश करने का लक्ष्य रखा है। इसमें 10 बिलियन तो अमरीका में निवेश करने का प्लान है।ऐसे में उसको वहां आरोपी बना दो ताकि ट्रम्प उसके साथ बिजनेस न कर पाए। तो फायदा किसका हो रहा है?

जाहिर है जो बड़े प्लेयर अडानी को रिप्लेस कर सकते हैं, और वो चाइनीज हैं।बाकियों की बसकी बात भी नही।
खेल क्या खेला गया?इलेक्ट्रॉनिक सबूत मिले हैं।
तो क्या व्हाट्सएप चैट थी? ईमेल थे? फोन रिकॉर्डिंग थी?
वही खेल कि कहो कि आपका मेसेज इनक्रिप्टेड है और चुपचाप उसे स्टोर कर लो।(जिस वजह से व्हाट्सएप पर 5 साल का बैन लगा है)

इधर मदरनंदन कब से कह रहा कि भारतीय बाजार में निवेश मत करो। दिक्कत ये नही कि आप नही करते, आप तो 5% भी नही हैं।दिक्कत है SBI, LIC जैसी फर्म्स हैं वो आपका पैसा भारतीय बाजार में लगाती हैं।इसी वजह से तो यदि शेयर मार्केट को दिक्कत हुई तो आपकी फर्म्स को दिक्कत होगी जिसमें अंततः आपको दिक्कत होगी जो फिर सड़क पर उपद्रव में बदलेगी।

इसे ऐसे भी समझो कि जिस देश ने समुद्र पर राज किया वही दुनिया पर राज करता है।एक समय ब्रिटेन की नेवी ऐसी थी तो उसका राज था। फिर अमेरिका की हो गयी तो उसका राज है और अब चीन वो कोशिश कर रहा है।
और हर देश को सिर्फ जहाज नही चाहिए समुद्र में मंडराने के लिए बल्कि वो जहाज कहीं डॉक भी तो करने चाहिए तो उसके लिए चाहिए होता है बंदरगाह।आज जो बंदरगाह व्यापार के लिए है, कल वो युद्ध के काम भी आता है।एक अदना रनवे तक बड़े मिलिट्री कार्गो प्लेन या फाइटर प्लेन को लैंड करने के काम आता है और अडानी यही तो कर रहा है।

आज उसके पास करीब दुनिया भर में 30+ पोर्ट्स हैं(भारत सहित), लेकिन वो भारत के लिए(अपने व्यापार के लिए भी) आगे भी कोशिश में लगा है कि ज्यादा से ज्यादा पोर्ट, एयरपोर्ट हथिया दूं तो दिक्कत किन्हें हो रही, आप देख रहे हैं।वो माइंस जैसी जगह जाता है जहां पहले से ही अमरीका घुसा है या चीन घुस रहा है क्योंकि ऐसा निवेश 50-100 साल के लिए हो जाता है तो वहां की सरकार के साथ आपकी बॉन्डिंग बन जाती है फिर चाहे कोई भी सरकार आती रहे जिससे आप वहां अपना इंफ्लुएंस बरकरार रख सको।

एनर्जी कल भी फ्यूचर था और आज भी है।तब तेल वाले देश दुनिया चला रहे थे, आगे ग्रीन एनर्जी वाले चलाएंगे तो वो वहां भी कोशिश में लगा है।तो सोचो किसे दिक्कत आ रही होगी?

एशिया में जिसे हमसे दिक्कत है वो है चीन और पश्चिम में जिसे हमसे दिक्कत है वो है अमरीका। दिक्कत का कारण ये है कि हम इनकी शर्तों पर व्यापार नही करते। इनके कहने पर नीतियां नही बनाते और न बदलते।
अमरीका ने चीन को खड़ा किया लेकिन भारत अपने दम पर खड़ा हो रहा है।

यहीं पर दिक्कत है क्योंकि जब आप किसी और के भरोसे ऊपर उठते हो तो उसके अनुसार काम करते हो।
और यदि आप अपने को ध्यान में रखकर ऊपर उठना चाहते हो तो आप वो फैसले लेते हो जो आपके फायदे में हों।

इसी से अमरीका और चीन को दिक्कत है कि वो भारत को डिक्टेट नही कर पाते।इसी वजह से दोनों भारत पर एक साथ हमलावर होते हैं भले ही आपस में दुश्मन हों क्योंकि भारत यदि ऐसे ही बढ़ता रहा तो बिना इनकी बदौलत, इनसे बहुत आगे निकल जायेगा जो अंततः दुनिया को अपनी ओर खींच लेगा बिना कोई दमन किये या कर्ज के बोझ तले किसी देश को डालकर।

इसलिए जब अमरीका भारत पर हमला करता है तो चीन फायदा उठाने की कोशिश करता है।जब चीन भारत पर हमला करता है तो अमरीका फायदा उठाने की कोशिश करता है।दोनों को लगता है कि हमारी लड़ाई में तीसरा कहाँ से उभर रहा।हम दोनों ही दुनिया पर राज करेंगे।
वरना चीन की कितनी कम्पनियां अमरीका में बेमानी करती हैं, उनपर कितने केस हुए?

अमेरिकन दुनिया भर में केस करते हैं, दुनिया भर की अदालतों में करवाते हैं, अपने विरोधियों के खिलाफ अमेरिका वामपंथी जजों की अदालत में करते हैं। उनकी पुलिस/एफबीआई और स्थानीय पुलिस में भी रिपोर्ट दर्ज करती है, फिर मीडिया से भी दुनिया भर में प्रचार करके वहां की सरकारों को आई अस्थिर करते हैं। कभी सोचा आज तक उनपर कितने केस हुए?

जबकि यह प्रमाणित सत्य है कि दुनिया का 90% भ्रष्टाचार अदृश्यराज और अमेरिकन कंपनियां तथा अमेरिकन नागरिक करते हैं। केस छोड़ो, मीडिया ने ही कितना हल्ला किया जो इनके बिजनेस प्रभावित हुए?

इसी वजह से भारत को जो करना या लड़ना है वो अपने दम पर ही करना/लड़ना है।एक फ्रंट में अमरीका है और दूसरे फ्रंट में चीन। आधे फ्रंट में दोनों का पालतू पिल्ला उर्फ मुस्लिम लीग है।असली ढाई फ्रंट ये है भारत का।
बाकी सब तो इनके(ढाई फ्रंट के) पिल्ले हैं जो इनके कहने पर काटने की कोशिश करते हैं।

साभार प्राप्त

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साभार.....
स्वरा भास्कर की बुझी हुईं शकल सूरत पर तंज करके,उसकी बुर्के में ढंकी तस्वीरें दिखा कर आप सोचते होंगे कि आप नई जेनरेशन की लड़कियों को इस्लाम की वीभत्स सच्चाई,इसके क्रूर परिणाम दिखा लेंगे... उन्हें उधर जाने से रोक लेंगे...
लेकिन शायद आप एक इंडॉक्ट्रिनेटेटिड माइंड की अवस्था को नहीं समझ रहे. वामपंथ की जकड़ में बंधे मस्तिष्क के कनेक्शंस को नहीं पढ़ पा रहे.

इन तस्वीरों में स्वरा एक विक्टिम दिखाई देती है..पर यह विक्टिमहुड उसने खुद चुना है.वह इसको दुनिया के सामने दिखा रही है,उसकी प्रदर्शनी कर रही है. और एक भी वामी फेमिनिस्ट लड़की इसके लिए उसके चॉइसेस को दोष नहीं देगी.बल्कि वह और आकर्षित होगी कि जरूर इस्लाम में कोई खास बात होगी.. स्वरा को इस गुलामी से,इस नरक से कुछ तो मिला होगा कि उसने हंसती खेलती आजादी को छोड़कर इसको खुद चुना.

स्वतंत्रता एक सुंदरतम अवस्था है.. लेकिन हर किसी को इसका वही मूल्य नहीं दिखाई देता. मनुष्य की सारी उपलब्धियां,सभ्यता की सारी प्रगति मानव स्वतंत्रता की देन है. लेकिन यह एसोसिएशन सबको स्वतः दिखाई नहीं देता. सबसे पहले,सबसे आसानी से हम अपनी इस सबसे बड़ी सम्पदा को सरेंडर करने को तैयार हो जाते हैं.और जो पहले से ही वामपंथी है,जिसने एक बार अपनी स्वतंत्रता को सरेंडर कर दिया उसे एक जेल से निकल कर दूसरी जेल में जाने में क्या समस्या हो सकती है?

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यह तो अति हो गई खड़गे साहब ? आपने योगी आदित्यनाथ की तुलना आतंकवाद से कर दी ? मतलब प्रकारांतर से भगवा को कहा क्या ? अपने भगवा और योगी के मुंडे हुए सिर पर भी टिप्पणी कर दी ? क्या जरूरत थी इस सब की ? वह तो आपके सिपहसालार दिग्विजय सिंह बरसों पहले भगवा आतंकवाद का ढिंढोरा पीट चुके हैं ।

यह और बात है कि जब कोई प्रमाण नहीं मिला तो दिग्विजय का बयान खुद अपनी ही मौत मर गया । योगी आदित्यनाथ एक संत जरूर हैं , एक बहुत बड़ी गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर भी हैं , लेकिन कोई संत राजनीति में नहीं आएगा , ऐसा कोई विधान नहीं है । आपकी सरकार 60 वर्ष सत्ता में रही खड़गे साहब , ऐसा कोई कानून आपकी पार्टी ने भी नहीं बनाया ।

कांग्रेस की सर्वोपरि नेता इंदिरा जी के मां आनंदमयी , धीरेन्द्र ब्रह्मचारी , शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती आदि से कितने गहरे संबंध थे , पता है न आपको ? राजनीति का धर्म से कोई बैर नहीं है । धर्म और अध्यात्म तो प्राचीनकाल से राजनीति को दिशा देते आए हैं । यूं भी हम और आप संसार के सबसे प्राचीन देश भारतवर्ष में रहते हैं । चूंकि आप संस्कृति के गढ़ दक्षिण भारत से आते हैं अतः यहां का सांस्कृतिक वैभव आपको भली भांति पता है ।

खड़गे साहब जरा पड़ौसी बांग्लादेश में हिंदुओं की दुर्दशा भी देख लीजिए ? हिन्दू औरतों को किस तरह भीड़ के बीच नंगा किया जा रहा है , दर्जनों लोग उन्हें सरे आम नोच रहे हैं , देखा आपने या दिखाई नहीं दिया ? बताइए , वे बांग्लादेशी हिन्दू तो बंटे भी नहीं और बिन बंटे ही कट रहे हैं । आपके आका खड़गे साहब आपके आका , हिंदुओं को जाति जाति में बांटने का षडयंत्र कर रहे हैं । 82 वर्ष की उम्र हो जाने के बावजूद आप हिंदुओं को बांटने की वकालत कर रहे हैं ?

तो योगी ने उन हिंदुओं से यही तो कहा है कि बंटोगे तो कटोगे ? साथ में यह भी कहा है कि एक रहोगे तो नेक रहोगे । अरे जनाब आप को हिंदुओं की रत्ती भर परवाह नहीं तो कोई बात नहीं । हो भी कैसे , आधे हिन्दू तो आपके और सेक्युलर पार्टियों के साथ ही हैं न ! फिर क्या गम ? आप जानते भी हैं कि हिन्दू कभी एक नहीं होंगे और आपकी बस्तियां बसती रहेंगी । और हां जनाबे आली , हिन्दू कभी सचमुच एक हो गए तो आपकी बंसरी फट जाएगी और आपके आका म्याऊं म्याऊं करते फिरेंगे ।

तो बुजुर्गवार आदरणीय योगी को और उनके भगवे को आतंकवादी मत कहिए । उन पर पार पाना आपके बस में नहीं । पर एक बात जरूर है खड़गे साहब ! अभी तक आप शाह मोदी तक सीमित रहे जिनका कद आपके समकक्ष है । अब आप एक मुख्यमंत्री पर आए हैं । यक़ीनन कल हेमंता बिस्व सरमा पर आएंगे । क्या जरूरत है इस उम्र में इतनी मशक्कत की ? आराम की उम्र है बुजुर्गवार आराम कीजिए । योगी और हेमंता पर आएंगे तो मुश्किल होगी ?

पीपल पेड़ के स्वास्थ्यलाभ
यह पेड़ केवल भारतीय उपमहद्वीप में पाया जाता है। भारतीय इस पेड़ का धार्मिक महत्‍व तो है साथ ही आयुर्वेद में इसका खास महत्‍व है। कई बीमारियों का उपचार इस पेड़ से हो जाता है। गोनोरिया, डायरिया, पेचिश, नसों का दर्द, नसों में सूजन के साथ झुर्रियों की समस्‍या से निजात पाने के लिए इस पेड़ का प्रयोग कीजिए। एंटीऑक्‍सीडेंट युक्‍त यह पेड़ हमारे लिए बहुत फायदेमंद है।

झुर्रियों से बचाव
पीपल की जड़ों में एंटीऑक्सीडेंट सबसे ज्यादा पाए जाते हैं। इसके इसी गुण के कारण यह वृद्धावस्था की तरफ ले जाने वाले कारकों को दूर भगाता है। इसके ताजी जड़ों के सिरों को काटकर पानी में भिगोकर पीस लीजिए, इसका पेस्‍ट चेहरे पर लगाने से झुर्रियां से झुटकारा मिलता है।

दातों के लिए
पीपल की 10 ग्राम छाल, कत्था और 2 ग्राम काली मिर्च को बारीक पीसकर पाउडर बना लीजिए, नियमित रूप से इसका मंजन करने से दांतों का हिलना, दांतों में सड़न, बदबू आदि की समस्‍या नहीं होती है और यह मसूड़ों की सड़न को भी रोकता है।

दमा में फायदेमंद
पीपल की छाल के अन्दर का भाग निकालकर इसे सुखा लीजिए, और इसे महीन पीसकर इसका चूर्ण बना लें, इस चूर्ण को दमा रोगी को देने से दमा में आराम मिलता है।

दाद-खाज खुजली में फायदेमंद
पीपल के 4-5 कोमल, नरम पत्ते खूब चबा-चबाकर खाने से, इसकी छाल का काढ़ा बनाकर आधा कप मात्रा में पीने से दाद, खाज, खुजली जैसे चर्म रोगों में आराम होता है।

एडि़यों के लिए
पैरों की फटी पड़ी एड़ियों पर पीपल के पत्‍ते से दूध निकालकर लगाने से कुछ ही दिनों फटी एड़ियां सामान्य हो जाती हैं और तालु नरम पड़ जाते हैं।

घावों को भरे
पीपल के ताजे पत्तों को गर्म करके घावों पर लेप किया जाए तो घाव जल्द सूख जाते हैं। अधिक गहरा घाव होने पर ताजी पत्तियों को गर्म करके थोडा ठंडा होने पर इन पत्तियों को घाव में भर देने से कुछ दिनों में घाव भर जाते हैं।

जुकाम होने पर
पीपल के कोमल पत्तों को छाया में सुखाकर उसे अच्‍छे से पीस लीजिए, इसे आधा लीटर पानी में एक चम्मच चूर्ण डालकर काढ़ा बना लें। काढ़े में पीसी हुई मिश्री मिलाकर कुनकुना करके पीने से नजला-जुकाम से राहत मिलती है।

नकसीर होने पर
नकसीर की समस्‍या होने पर पीपल के ताजे पत्तों का रस नाक में टपकायें, इससे नकसीर की समस्‍या से आराम मिलता है।

पेट की समस्‍या के लिए
इसे पित्‍त नाशक माना जाता है, यानी यह पेट की समस्‍या जैसे - गैस और कब्‍ज से राहत दिलाता है। पित्‍त बढ़ने के कारण पेट में गैस और कब्‍ज होने लगता है। ऐसे में इसके ताजे पत्‍तों के रस एक चम्‍मच सुबह-शाम लेने से पित्‍त का नाश होता है।

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जब मैं नेमिशारण्य‌‌ तीर्थ गया तो मैंने वहां‌ सूत ऋषि का आश्रम देखा। सूत ऋषि पहले संत थे जिन्होंने सभी संतों मुनियों को इकट्ठा करके उन्हें सत्यनारायण व्रतकथा सुनाई थी। तभी से सनातनियों में सत्यनारायण व्रत कथा कराने का परंपरा है।

एक और सूत‌ संत हुए हैं उग्रश्रवा जिन्हें पुराणों का पिता कहा गया है।

बाकि तो यह बात सब जानते हैं कि सूतपुत्रों को पढ़ने का अधिकार नहीं था कर्ण‌ के साथ बड़ा अन्याय हुआ है।

अपनी दो कौड़ी की किताब रश्मिरथी के चक्कर में दिनकर जो गंद मचाकर गए हैं उसे आज तक हिन्दू भुगत रहे हैं बाकि बचा खुचा काम राहि मसूम रजा ने महाभारत के डॉयलॉग में कर दिया।

रह गए हिन्दू उन्हें इतनी फुर्सत ही नहीं कि अपने ही धर्म ग्रन्थ पढ़ लें।
Rucha Mohan

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भड़के भईया का संस्मरण......
इस्सर बईठ दलिद्दर भागे

जब भी ऊख के खेतों की ओर जाते थे तो रसीले गन्ने देख कर उसे तोड़ने की इच्छा करती किन्तु बाबूजी की हिदायत कि एकादशी से पहले उख तोडना पाप है, याद कर मन मसोस कर रह जाते। ग्यारस के दिन गन्ने को सजाया जाता था और उनके बीच #वैदिक_रीति से विवाह कराया जाता। चरखी गाड़ी जाती,गन्ने की पेराई का औपचारिक शुरुआत की जाती। रस का सर्वप्रथम भोग #ग्राम_देवी को लगाया जाता था उसके बाद सारे गाँव के लोगों के साथ गन्ने का रस पिया जाता।

ताजे निकलते रस में दही डाल कर गरम गरम धनिया आलू के साथ पीने का आनंद अब केवल स्मृतियों में है। रस से राब बनायी जाती, गुड़ बनता। गुड़ बनना व्यक्तिगत नही था, आस पास के पट्टीदार, आने जाने वाले सब गर्म गर्म भेली लेकर जाते ही थे।

#तुलसी_माता के लिए चुन्नी आती थी, उसे ओढ़ा कर तुलसी के नीचे एक महीने दिया जलाया जाता था। एकादशी से एक दिन पूर्व #सूप की खरीददारी की जाती थी। सूप की गांठे हम लोग गिनते, सुबह चार बजे गांव की सारी महिलाये गन्ने से पुराने सूप पीटते हुए "इस्सर बईठ दलिद्दर भागे " कहती हुयी घर से खेत तक जाती थी वहीं पर सूप छोड़ देती थीं। सूप पीटने से प्रेत, दरिद्र सब भाग जाता है।

सूप पीटने के पीछे की एक और कथा पितरों से जुड़ी है। पितर पाख के बाद यदि कोई पितर अपने लोक जाने से रह गया हो तो सूप की आवाज एक संकेत होती थी कि महाराज अपने थाने पवाने चले जाओ।

हम बच्चों के बीच एक और मिथ (आप इसे बच्चों का सत्य भी कह सकते है ) था कि जिस बच्चे के मुह में दाने या कुछ और हो गया है अगर वो गांव की सबसे बुढ़िया का सूप छीन कर भागे तो बुढ़िया जितनी गाली देगी चेहरे की सुंदरता उतनी ही बढ़ेगी। यह काम एक बार हमारे बुआ के लड़के ने किया था। सुबह बात पता चल गयी तो (बच्चे तब झूठ नही बोला करते ) उनकी इतनी पिटाई हुयी कि बेचारे काले से लाल हो गये। सच में उस वक्त उनका चेहरा बिना किसी क्रीम के लोहित हो गया था।

आज गांव से युवा गन्ने के जैसे गायब होकर शहर में किसी चौराहे पर गन्ने को जूस निकालने वाली मशीन जैसे बैठे हैं, यह बात आज खटकती है, गन्ने के उस पेड़ को काटा नही जाता था जिसकी पूजा होती थी पर आज उसे काट कर लोग पूजा कर रहे हैं। लोक की निर्दोष यमुना शहरों में आकर आकर सभ्यता के गंदे नाले में बदल जाती है, यही स्थिति आज त्यौहारों की है। नगर का अहंकार और संकुचित मन लोक की विशालता को संभाल नही सकता। वे त्यौहारों को भव्य बनाने के चक्कर मे उनकी आत्मा खत्म कर देते हैं। अधिक भव्यता अश्लीलता होती जा रही है। देओठनी एकादशी आने वाली है, आप बधाइयां देते हैं, बैकुंठ नाथ के जागरण की बात करते हैं पर अपने अंदर इस्सर के स्थापत्य और दरिद्र को निकालने के लिए मात्र खानापूर्ति करते हैं।

जहाँ ईश्वर है वहाँ दारिद्र्य नही हो सकता। दरिद्रता का अर्थ यह नही कि आपके पास दूसरों से कम है बल्कि होने के बावजूद क्या पाएं क्या हड़प लें, दस गाड़ी है तो इग्यारहवी क्यों नही है जैसी आत्मिक वंचना में जीने से है।

#इस्सर_बईठ_दलिद्दर_भागे

पोस्ट ट्रुथ हीरो

मूल परंपरा से हट कर, बिना इवोल्यून के, बिना तप और उपार्जित गुणों के केवल नायक का मुखौटा लगाए वह व्यक्ति जो अपनी लालच के चलते दूसरों के निर्देश को जीवन पाथेय बना लेता है, पोस्ट ट्रुथ हीरो या सत्योत्तर नायक कहलाता है।

वर्तमान भारतीय व्यवस्था में धर्म के क्षेत्र में शंकराचार्य करना पर सत्योत्तर नायक खूब तैयार किए जा रहे, किए गए ताकि उन कमजोर और तमगुणी लोगों के जरिए धर्म का भी वही परिप्रेक्ष्य बनाया जा सके। एक पार्टी के एजेंट के रूप अधोक्षजानंद इसका बड़ा उदाहरण है, कुछ और उदाहरण हैं जो धर्म पर कम, बाकी मामलों पर अधिक मुखर रहते हैं।

ये फेक नायक श्रद्धा आस्था भाव के नाम पर भीड़ इकट्ठी करते हैं और फिर अपने बयानों से विरोधाभास पैदा करते हैं। यह विरोधाभास धर्म, राजनीति, सांस्कृतिक संरचनाओं को बांटने का काम करता है। लोग अपने फेक हीरो को सच मानते हुए आपस में गाली गलौज मारपीट करते हैं। वामपंथी उस मारपीट को धर्म से जोड़कर उसकी व्याख्या करता है कि जब किसी धर्म के मानने वाले अभद्र और गाली देने वाले हैं तो धर्म कैसा होगा।

वामपंथियों द्वारा पोस्ट ट्रुथ हीरो के सहारे धर्म और संस्कृति को डिस्क्रेडिट करने की चाल अत्यंत मारक होती है। ये न सिर्फ पोस्ट ट्रुथ हीरो तैयार करते हैं बल्कि सचमुच के नायक को फांसते हैं। उन्हें डिस्क्रेडिट करने के षडयंत्र रचते हैं। उनके षड्यंत्रों का शिकार होने वालों में कांची कामकोटि के स्वामी जयेंद्र सरस्वती, कृपालु जी महाराज से लेकर यह शृंखला बहुत लंबी है।

पोस्ट ट्रुथ हीरो का प्रयोग मीडिया भी खूब करती है, हिंदू धर्म से जुड़े साधुओं का चरित्र गिरा कर दिखाना और गिरे हुए लोगों को स्वामी, बाबा, गुरुजी कहकर ग्लैमराइज कर मीडिया टीआरपी बटोरता है। स्वामी अग्निवेश, स्वामी ओम जैसे लोग इसी श्रेणी के थे।

साहित्य आजतक में तमन्ना भाटिया और उर्फ़ी जावेद को बुलाना भी उसी श्रेणी में आता है। ये लोग साहित्यकार नहीं पर साहित्यकारों की जगह पर विराजमान होंगे। आप की मजबूरी ही कि साहित्य के नाम पर इन्हें देखें।

मीडिया सच बनाती है, चींटी को हाथी सिद्ध करती है, सच क्या है उससे मतलब नहीं है इसका। पोस्ट ट्रुथ यानी सत्योत्तर सिद्धांत के बारे में मास्क मैनिफेस्टो में चर्चा की है। जिन्होंने पढ़ा है वह इसे जानते हैं कि ऐसी बात जिसका अस्तित्व नहीं है उसे सत्य के रूप में स्थापित कर देना पोस्ट ट्रुथ कहलाता है। जैसे उर्फ़ी साहित्यकार नहीं फिर भी साहित्य की बातों में इसे शामिल किया जाएगा।
Pawan Vijay

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