अंकों का आतंक
स्कूल के विद्यार्थियों के लिए आमतौर पर सबसे महत्वपूर्ण शब्द है : मार्क्स जिसे आम बोलचाल की भाषा में नम्बर कह देते हैं ।
इस समय पिछले कुछ दिनों से बोर्ड की परीक्षा के परिणाम घोषित होने के कारण इस शब्द का ज़िक्र चरम पर है । ताज्जुब की बात यह है कि आज एकमात्र संख्या जिससे हम एक बच्चे का मूल्यांकन करते हैं , कुछ साल बाद प्राय: उसका महत्व कुछ भी नहीं रह जाता ।
क्या- क्या नहीं करते इस एक संख्या के लिए ! झूठ और चोरी तो मामूली बात है , बात जान देने तक पहुंच जाती है । हमारे देश में सबसे अधिक आत्महत्या युवा इसी कारण करते हैं ।
एक शिक्षक होने के नाते अनेक हास्यास्पद और करूण दृश्य परीक्षा के नम्बरों को लेकर देखे हैं । एक लड़का था दसवीं का । पढ़ाई में कोई विशेष रूचि नहीं थी । बोर्ड परीक्षा का परिणाम आया । साठ प्रतिशत से कुछ अधिक ही अंक थे कुल में । उसके पुराने रिकाॅर्ड को देखते हुए संतोषजनक थे । परिणाम के अगले दिन बच्चे के घर उसकी मां ने बहुत शर्मसार होते हुए कहा - ' सर , हमने इसके नम्बर फलां को दस पर्सेन्ट ज़्यादा बता दिए हैं । आपको तो पता है कि हमारे - उनके बीच कुछ छुपा नहीं रहता मगर उनको सच बताया तो बात और जानने वालों के पास जाएगी और फिर दूसरे लोग हमारा मज़ाक उड़ाएंगे । ' फिर और दिलचस्प बात कही - ' जब से रिज़ल्ट आया है ना तबसे दूर- दूर के रिश्तेदार भी फोन करके इसके नम्बर पूछ रहे हैं । उनमें कुछ तो वो भी हैं जिन्होंने कई साल से हाल - चाल भी नहीं पूछा । रिज़ल्ट आ गया है और हमारा बच्चा पढ़ाई में कमज़ोर है तो किसी और से हमारा नम्बर ले - लेकर फोन कर रहे हैं ।'
आज चार साल बाद वही तथाकथित ' नालायक ' छात्र म्यूजिक में डिग्री करने के करीब है और उर्दू शायरी में अपने टेलैंट के दम पर देश- विदेश में घूम रहा है और उन ' पूछताछी ' रिश्तेदारों के लिए ईर्ष्या का कारण बना हुआ है !
एक और बेहद मेधावी छात्र के बारहवीं की परीक्षा में आशा से थोड़े कम मार्क्स आए । भयंकर अवसाद में डूब गया । ' ज़िन्दगी में अब कुछ नहीं होगा ' , उसने लगभग रोते हुए कहा मुझसे । बाद में एक एंट्रेंस एग्जाम के जरिये एक मैनेजमेंट कोर्स में एडमिशन लिया । एक अन्तरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में हिस्सा लेकर ग्रेजुएशन की पढ़ाई के दौरान ही विदेश में जाकर विजेता घोषित हुआ और फिर देश के सबसे नामी आई आई एम से एम बी ए कर एक बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी में बहुत अच्छी तनख्वाह पर काम कर रहा है !
इतना कम संबंध है बोर्ड की परीक्षा में मिले नंबरों का और बाद की ज़िन्दगी का । अंको का आतंक कम होना ही चाहिए।
साभार
#भोजन के प्रकार .....
#भीष्म पितामह ने अर्जुन को 4 प्रकार से भोजन न करने के लिए बताया था ...!
1 ;- पहला भोजन ....
जिस भोजन की थाली को कोई लांघ कर गया हो वह भोजन की थाली नाले में पड़े कीचड़ के समान होती है ...!
2 :-दूसरा भोजन ....
जिस भोजन की थाली में ठोकर लग गई,पाव लग गया वह भोजन की थाली भिष्टा के समान होता है ....!
3 :- तीसरे प्रकार का भोजन ....
जिस भोजन की थाली में बाल पड़ा हो, केश पड़ा हो वह दरिद्रता के समान होता है ....!
4 :-चौथे नंबर का भोजन ....
अगर पति और पत्नी एक ही थाली में भोजन कर रहे हो तो वह मदिरा के तुल्य होता है .....
और सुनो अर्जुन अगर पत्नी,पति के भोजन करने के बाद थाली में भोजन करती है उसी थाली में भोजन करती है या पति का बचा हुआ खाती है तो उसे चारों धाम के पुण्य का फल प्राप्त होता है ...!
चारों धाम के प्रसाद के तुल्य वह भोजन हो जाता है ....!
और सुनो अर्जुन .....
बेटी अगर कुमारी हो और अपने पिता के साथ भोजन करती है एक ही थाली में तो उस पिता की कभी अकाल मृत्यु नहीं होती ....
क्योंकि बेटी पिता की अकाल मृत्यु को हर लेती है ! इसीलिए बेटी जब तक कुमारी रहे तो अपने पिता के साथ बैठकर भोजन करें ! क्योंकि वह अपने पिता की अकाल मृत्यु को हर लेती हैं ...!
\u261d\ud83c\udffc #स्मरण रखियेगा !\ud83d\udc47\ud83c\udffd
"संस्कार दिये बिना सुविधायें देना, पतन का कारण है ...!"
"सुविधाएं अगर आप ने बच्चों को नहीं दिए तो हो सकता है वह थोड़ी देर के लिए रोए ...
पर संस्कार नहीं दिए तो वे जीवन भर रोएंगे ....!"
इतना हंस क्यों रहे हो
हंसूं ना तो क्या करूं?
क्यों क्या हो गया?
वह तुम जानते हो न अपना रामलाल\u2757
कौन वही जो कच्ची घानी का सरसों का तेल निकालता है ? कोल्हू वाला!
हां वही वही, उसने आज अपनी बीवी का ही तेल निकाल दिया!
अच्छा! वह कैसे?
आज शाम घर जाते ही अपनी बीवी से बोल्या की मोदी ने आज 500 के नोट भी फेल कर दिए। तेरे पास 2000 के 4 नोट निकले थे तो पांच सौ की भी जरूर होवेंगे। जा ले आ। बस इतना कहना ही था कि राम लाल की बीवी मोदी को गालियां देती हुई कमरे में गई और अलमारी से दे दना दन 1-2-3-4-5-6-7-8-9 और ये पूरी साढ़े नौ गाड़ियां 5-5 सौ वाली की निकालकर ले आई।
अब कई रोज तक रामलाल शाम को हमें पार्टी देगा और उसकी बीवी मोदी को गालियां \ud83e\udd23\ud83e\udd23\ud83e\udd23
यूं ही (ऐंवें ई)
आजकल पूरे व्यापारी जगत के अंदर गुलाबो की चर्चा है.
पल में गुलाबो यहां, पल में गुलाबो वहां, पल में गुलाबो न जाने कहां\u2753
आजकल गुलाबों की स्पीड देखने वाली है। हर कोई गुलाबों को पाना तो चाहता है पर अपने पास रखना नहीं चाहता। पहले तो गुलाबों को सात तिजोरियों में ताले चाबी की देखरेख में बंद करके रखा जा रहा था, पर अब तो हाथ की हाथ आगे। यहां तक कि गुलाबों को लेने से पहले उसे आगे ठिकाने लगाने का प्रोग्राम सेट करते हुए भी लोगों को देखा जा रहा है।
वाह मोदी तेरे कारनामे निराले \ud83d\udccc
तेरे एक मास्टर स्ट्रोक ने पूरे बाजार को गर्म करके रख दिया। सोना देखते ही देखते 15000 बढ़ गया। गुलाबो लाऔ और सोना ले जाओ। कहने का मतलब यह है कि पूरा देश ही गुलाबो के रंग में रंग गया ।
जिनके पास 15-20 बंडलों से ज्यादा है उन्हें बड़े आदर सूचक शब्दों से संबोधित किया जा रहा है, इज्जत मान बख्शा जा रहा है पर हमारे जैसों 10-20 पत्तों वालों को तो हिकारत की नजर से देखा जा रहा है। खैर कोई बात नहीं इस बार ना सही अगली बार सही\u2757
मोदी तेरी लीला अपरंपार \u2757
हम जैसे क्या समझेंगें तेरी लीला तेरी लीला तो केजरीवाल जैसा घाघ भी नहीं समझ पाया।
कूटने से बढ़ती है - इम्युनिटी पॉवर
मैंने काफी बुजुर्ग दादा जी से पूछा
कि पहले लोग इतने बीमार नही होते थे ?
जितने आज हो रहे है ....
तो दादा जी बोले
बेटा पहले हम हर चीज को कूटते थे
जबसे हमने कूटना छोड़ा है, तबसे ही
हम सब बीमार होने लग गए है.....
मैंने पूछा :- वो कैसे ?
दादा जी (मुस्कुराते हुए)
जैसे पहले खेत से अनाज को कूट कर घर लाते थे ...
घर में मिर्च मसाला कूटते थे .......
कभी कभी बड़ा भाई छोटे भाई को कूट देता था .......
और जब छोटा भाई उसकी शिकायत
माँ से करता था ....तो माँ.. बड़े भाई को
कूट देती थी .....और कभी कभी तो दादा जी भी
पोते को कूट देते थे ......यानी कुल मिलाकर
कूटने का सिलसिला निरंतर चलता रहता था ......
कभी माँ.. बाजरा कूट कर शाम को खिचड़ी
बनाती थी .....
पहले हम कपडे भी कूट कर धोते थे .....
स्कूल में मास्टर जी भी जमकर कूटते थे ....
जहाँ देखो वहां पर कूटने का काम
चलता रहता था .....जिससे कभी कोई
बीमारी नजदीक नही आती थी ......
सबका इम्युनिटी पॉवर मजबूत बना रहता था ...
जब कभी बच्चा सर्दी में नहाने से मना करता था .....
तो माँ पहले उसे..कूटकर उसकी इम्युनिटी
पॉवर बढ़ाती थी और फिर नहलाती थी ...
जब कभी बच्चा खाना खाने से मना करता था .....
तब भी माँ पहले कूटती थी
फिर खाना खिलाती थी .....ऐसे ही सबका
इम्युनिटी पॉवर कायम रहता था .....
तो कुल मिलाकर सब कुटाई की महिमा है
जो आज कल बंद हो गयी है
जिससे हम सब बीमार ज्यादा रहने लग गए है
इसी को कहते हैं #कूटनीति.
https://www.outsideonline.com/....outdoor-gear/water-s