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पोस्ट ट्रुथ हीरो

मूल परंपरा से हट कर, बिना इवोल्यून के, बिना तप और उपार्जित गुणों के केवल नायक का मुखौटा लगाए वह व्यक्ति जो अपनी लालच के चलते दूसरों के निर्देश को जीवन पाथेय बना लेता है, पोस्ट ट्रुथ हीरो या सत्योत्तर नायक कहलाता है।

वर्तमान भारतीय व्यवस्था में धर्म के क्षेत्र में शंकराचार्य करना पर सत्योत्तर नायक खूब तैयार किए जा रहे, किए गए ताकि उन कमजोर और तमगुणी लोगों के जरिए धर्म का भी वही परिप्रेक्ष्य बनाया जा सके। एक पार्टी के एजेंट के रूप अधोक्षजानंद इसका बड़ा उदाहरण है, कुछ और उदाहरण हैं जो धर्म पर कम, बाकी मामलों पर अधिक मुखर रहते हैं।

ये फेक नायक श्रद्धा आस्था भाव के नाम पर भीड़ इकट्ठी करते हैं और फिर अपने बयानों से विरोधाभास पैदा करते हैं। यह विरोधाभास धर्म, राजनीति, सांस्कृतिक संरचनाओं को बांटने का काम करता है। लोग अपने फेक हीरो को सच मानते हुए आपस में गाली गलौज मारपीट करते हैं। वामपंथी उस मारपीट को धर्म से जोड़कर उसकी व्याख्या करता है कि जब किसी धर्म के मानने वाले अभद्र और गाली देने वाले हैं तो धर्म कैसा होगा।

वामपंथियों द्वारा पोस्ट ट्रुथ हीरो के सहारे धर्म और संस्कृति को डिस्क्रेडिट करने की चाल अत्यंत मारक होती है। ये न सिर्फ पोस्ट ट्रुथ हीरो तैयार करते हैं बल्कि सचमुच के नायक को फांसते हैं। उन्हें डिस्क्रेडिट करने के षडयंत्र रचते हैं। उनके षड्यंत्रों का शिकार होने वालों में कांची कामकोटि के स्वामी जयेंद्र सरस्वती, कृपालु जी महाराज से लेकर यह शृंखला बहुत लंबी है।

पोस्ट ट्रुथ हीरो का प्रयोग मीडिया भी खूब करती है, हिंदू धर्म से जुड़े साधुओं का चरित्र गिरा कर दिखाना और गिरे हुए लोगों को स्वामी, बाबा, गुरुजी कहकर ग्लैमराइज कर मीडिया टीआरपी बटोरता है। स्वामी अग्निवेश, स्वामी ओम जैसे लोग इसी श्रेणी के थे।

साहित्य आजतक में तमन्ना भाटिया और उर्फ़ी जावेद को बुलाना भी उसी श्रेणी में आता है। ये लोग साहित्यकार नहीं पर साहित्यकारों की जगह पर विराजमान होंगे। आप की मजबूरी ही कि साहित्य के नाम पर इन्हें देखें।

मीडिया सच बनाती है, चींटी को हाथी सिद्ध करती है, सच क्या है उससे मतलब नहीं है इसका। पोस्ट ट्रुथ यानी सत्योत्तर सिद्धांत के बारे में मास्क मैनिफेस्टो में चर्चा की है। जिन्होंने पढ़ा है वह इसे जानते हैं कि ऐसी बात जिसका अस्तित्व नहीं है उसे सत्य के रूप में स्थापित कर देना पोस्ट ट्रुथ कहलाता है। जैसे उर्फ़ी साहित्यकार नहीं फिर भी साहित्य की बातों में इसे शामिल किया जाएगा।
Pawan Vijay