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जब मैं नेमिशारण्य‌‌ तीर्थ गया तो मैंने वहां‌ सूत ऋषि का आश्रम देखा। सूत ऋषि पहले संत थे जिन्होंने सभी संतों मुनियों को इकट्ठा करके उन्हें सत्यनारायण व्रतकथा सुनाई थी। तभी से सनातनियों में सत्यनारायण व्रत कथा कराने का परंपरा है।

एक और सूत‌ संत हुए हैं उग्रश्रवा जिन्हें पुराणों का पिता कहा गया है।

बाकि तो यह बात सब जानते हैं कि सूतपुत्रों को पढ़ने का अधिकार नहीं था कर्ण‌ के साथ बड़ा अन्याय हुआ है।

अपनी दो कौड़ी की किताब रश्मिरथी के चक्कर में दिनकर जो गंद मचाकर गए हैं उसे आज तक हिन्दू भुगत रहे हैं बाकि बचा खुचा काम राहि मसूम रजा ने महाभारत के डॉयलॉग में कर दिया।

रह गए हिन्दू उन्हें इतनी फुर्सत ही नहीं कि अपने ही धर्म ग्रन्थ पढ़ लें।
Rucha Mohan

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