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हिन्दु और हिन्दू
अद्भुतकोष के अनुसार
"हिन्दु" और "हिन्दू" दोनों शब्द पुल्लिंग है ।
दुष्टों का दमन करने वाले "हिंदू" कहे जाते हैं। सुंदर रूप से सुशोभित और दुष्टों के दमन में दक्ष।
इन दोनों अर्थों में भी
इन शब्दों का प्रयोग होता है
हिंदु हिंदूश्च पुंसि दुष्टानां च विघर्षणे |
रूपशालिनि दैत्यारौ....||
[ अद्भुत कोष ]
हेमंतकवि कोष के अनुसार
हिंदू उसे कहा जाता है कि
जो परंपरा से नारायण आदि देवताओं का भक्त हो।
हिंदूर्हि नारायणादि देवताभक्ततः ||
मेरुतंत्र के अनुसार
जो हीनाचरण को निंद्य समझ कर उसका त्याग करें वह हिंदू कहलाता है।
हीनं च दूषयत्येव हिन्दुरित्युच्यते प्रिये ||
शब्दकल्पद्रुमकोश के अनुसार
हीनता से रहित साधु जाति विशेष हिंदू है।
हीनं दूषयति इति हिन्दू ||
पारिजातहरण नाटक के अनुसार
जो अपनी तपस्या से दैहिक पापों तथा चित्त को दूषित करने वाले दोषों का नाश करता है तथा जो शस्त्रों से अपने शत्रु समुदाय का भी नाश करता है वह हिंदू कहलाता है।
रामकोष के अनुसार
हिंदू दुर्जन नहीं होता न अनार्य होता है ना निंदक ही होता है।
जो सद्धर्म पालक विद्वान और श्रौतधर्म परायण है वह हिंदू है।
हिंदुर्दुष्टो न भवति नानार्यो न विदूषकः |
सद्धर्मपालको विद्वान् श्रौतधर्म परायणः ||
हिंदू शब्द के अर्थ
"सौम्य" "सुंदर" "सुशोभित" "शील निधि" "दमशील" और "दुष्टदलन में दक्ष"
अरबी कोष के अनुसार
हिंदू शब्द का अर्थ "खालिस" अर्थात "शुद्ध होता है"
ना कि चोर आदि मलिन निकृष्ट अर्थ।
यहूदियों के मत में
हिंदूका अर्थ शक्तिशाली वीर पुरुष होता है।
हिन्दु पद वाच्यों की
कतिपय मुख्य परिभाषाएं
********************
1: वेदादि शास्त्रों को मानने वाली जाति ही हिंदू जाति है।
जो श्रुति स्मृति पुराण इतिहास प्रतिपादित कर्मों के आधार पर अपनी लौकिक पारलौकिक उन्नति पर विश्वास रखता है वह हिंदू है।
अपने वर्णाश्रम धर्मानुकूल आचार विचार के द्वारा जीवन व्यतीत करने वाला और वेद शास्त्रों को अपना धर्म ग्रंथ मानने वाला ही हिंदू है।
श्रुतिस्मृत्यादिशास्त्रेषु प्रामाण्यबुद्ध्यावलंब्य श्रुत्यादिप्रोक्ते धर्मे विश्वासं-निष्ठां च यः करोति स एव वास्तव हिंदुपदवाच्यः ||
वेदशास्त्रोक्तधर्मेषु वेदाद्युक्ताधिकारिवान् |
आस्थावान् सुप्रतिष्ठिश्च सोऽयं हिंदुः प्रकीर्तितः ||
2: जो गोभक्ति संपन्न है।
वेद और प्रणवादि में जिसकी दृढ़ आस्था है तथा पुनर्जन्मों में जिसका विश्वास है वही वास्तव में हिंदू कहने योग्य है।
इस परिभाषा के अनुसार
"जैन" "बौद्ध" "सिक्ख" आदि हिंदू मान्य हैं।
गोषु भक्तिर्भवेद्यस्य प्रणवादौ दृढामतिः |
पुनर्जन्मनि विश्वासः स वै हिंदुरिति स्मृतः ||
3: श्रुति स्मृति पुराण के अनुसार
निरूपित समस्त दुर्गुणों का दोषोंका जो हनन करें वह हिंदू है।
श्रुत्यादि प्रोक्तानि सर्वाणि दूषणानि हिनस्तीति हिन्दुः ||
4: वृद्धस्मृति के अनुसार
हिंसा से दुखित होने वाला सदाचरण तत्पर वर्ण उचित आचरण संपन्न वेद गोवंश और देव प्रतिमा की सेवा करने वाला हिंदू कहलाने योग्य है।
हिंसया दूयते यश्च सदाचारतत्परः |
वेदगोप्रतिमासेवी स हिंदुमुखशब्दभाक् ||
5: आधुनिक सुधारक हिंदुओं के मत मे
हिंदू शब्द
विचार नवनीत ग्रंथ में RSS के गुरु माने जाने वाले गोलवलकर जी पृष्ठ 44 और 45 पर
हिंदू अपरिभाष्य है।
इस शीर्षक से आप कहते हैं कि
"जैसे सूर्य चंद्र की परिभाषा हो सकने पर भी चरम सत्य की परिभाषा नहीं हो सकती वैसे ही मुसलमान ईसाई की परिभाषा है पर हिंदू अपरिभाषित ही है"
इस बातका खंडन करते हुए
धर्मसम्राट स्वामी श्रीकरपात्रीजी महाराज विचार "पीयूष" नामक ग्रंथ में कहते हैं
जिन ग्रंथों को आप प्रमाण रूप में उपस्थित करते हैं उन्हीं ग्रंथों ने ईश्वर तक की परिभाषाएं बतलाई गई हैं।
सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म |
विज्ञानमानन्दं ब्रह्म || आदि आदि
आश्चर्य है कि
जो हिंदुत्व के संबंध में
कुछ भी नहीं जानता
जो उसकी परिभाषा भी नहीं कर सकता
आज वहीं दुनिया के सामने बढ़-चढ़कर घमंड की बात करता है।
ऐसे संघ समूहों की संसार में कमी नहीं जो संसार में अपने को ही सर्वोत्कृष्ट मानते हैं।
"विचारपीयूष" ग्रंथ के
पृष्ठसं 336 से 348 तक
तथा पृष्ठसं5 से 50 तक
इसी विचारधारा को मानने वाले कुछ लोग कहते हैं कि
सिंधु से लेकर सिंधु पर्वतपर्यंत भारत भूमि को जो पितृभू और पुण्यभू मानता है वही हिंदू है।
किंतु उनकी यह परिभाषा अव्याप्ति अतिव्याप्ति दोषों से पूर्ण है।
इसके अनुसार
प्राचीन काल के वे हिंदू जो दूसरे द्वीपों में रहते थे हिंदू ही नहीं कहे जा सकते।
इसी विचारधारा के कुछ लोग कहते हैं कि
जो हिंदुस्तान में रहता है वह हिंदू है।
पर ऐसा नहीं है।
ऐसा मानने पर यहां विभिन्न धर्मों के रहने वाले लोग हिंदू कहे जाने लगेंगे।
जो कि उन्हें स्वयं स्वीकार नहीं है और हमारी उपर्युक्त परिभाषा ओं के अंतर्गत भी वे नहीं आते।
इसलिए यह विचार पूर्ण नहीं है।
सारगर्भित परिभाषा
जो वेदादिशास्त्रानुसार वेद शास्त्रोक्त धर्म में विश्वासवान् तथा स्थित है "वह हिंदू है"।
वेदादिशास्त्रों में वेदाध्ययन अग्निहोत्र बाजपेय राजसूय आदि कुछ धर्म ऐसे हैं जिनका अनुष्ठान जन्मना ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य ही कर सकते हैं।
निषादस्थपति याग रथकारेष्टि जैसे कुछ कर्मों का शूद्र ही अनुष्ठान कर सकते हैं।
कुछ सत्य दया क्षमा अहिंसा ईश्वर भक्ति तत्वज्ञान आदि का अनुष्ठान मनुष्य मात्र कर सकते हैं।
किंतु वे सभी वेदादि शास्त्रों का प्रामाण्य मानने वाले तथा अपने अधिकार अनुसार वेदादि शास्त्रोक्त धर्म का अनुष्ठान करने वाले हिंदू हैं।
जन्मना ब्राह्मणआदि का भी सब कर्मों में अधिकार नहीं है।
ब्राह्मण एवं वैश्य का राजसूय यज्ञ में अधिकार नहीं है।
ब्राह्मण क्षत्रिय दोनों का वैश्यस्तोम याग में अधिकार नहीं है।
निषादस्थपतीष्टि में उक्त तीनों का अधिकार नहीं है।
विशेषतः हिंदू शास्त्र अनुसार जिनके पुनर्जन्म विश्वास दाएभाग विवाह अंत्येष्टि मृतक श्राद्धादि कर्म होते हैं
वे सभी हिंदू हैं।
गाय में जिसकी भक्ति हो
प्रणव आदि ईश्वर नामों में यथा अधिकार जिसकी निष्ठा हो
तथा पुनर्जन्म में जिसका विश्वास हो
वह हिंदू है।
लक्षणा वृत्ति से हिंदू शब्द के हिंदू देश यानी हिंदुस्तान और वहां के निवासी हिंदू दोनों अर्थ होते हैं।
हिमालयं समारभ्य यावदिन्दु सरोवरम् |
तं देवनिर्मितं देशं हिंदुस्थानं प्रचक्षते ||